top of page

Women's day पर

  • Writer: pragya tiwary
    pragya tiwary
  • Mar 8, 2022
  • 2 min read

Updated: Jan 13, 2023

इस सुनहरी दिन की एक काली, अन्धेरी छाया भी है.... कुछ महीनों पहले एक दोस्त का परेशानी भरा फोन आया था मेरे पास। उसकी बताईं बातें मुझे आज भी ढंग से सोने नहीं देतीं। बिहार के एक गाँव के राजपूत परिवार में 4 दिन की बच्ची का गला दबा कर उसे मार दिया गया। वह परिवार मेरी उस दोस्त का था। वज़ह? वे चौथी बेटी नहीं चाहते थे। कल एक बंगाली ऐड देखा। एक लड़की सैलून जाती है अपने लंबे बाल कटवाने। हेयर ड्रेसर उसके सुंदर घने बाल काटना नहीं चाहती सो ट्रिम कर देती है। पर लड़की के ‘और छोटा’ ‘और छोटा’ कहने की वज़ह से उसे उसकी गरदन तक बाल काटने पड़ते हैं। अब यहाँ तक ठीक है वाले भाव के साथ जब हेयर ड्रेसर उसे उसके बाल दिखाती है तो लड़की अपने हाथों से अपने बाल पकड़कर देखती है और कहती है - ‘इतने छोटे के पकड़े ना जाएँ’। अभी से थोड़ी देर पहले लड़कियों का अनाथाश्रम चला रहे एक साहब का कथन पढ़ा, "फ़ायदा भी क्या है लड़कियों को पढ़ाने से?" इनके अनाथाश्रम में लड़कियों को स्कूली शिक्षा उपलब्ध नहीं कराई जाती...सिर्फ़ धार्मिक पाठ पढ़ाया जाता है और बहिश्ते-ज़ेबर तालीम (इसमें मुस्लिम परंपरा के अनुसार जिंदगी जीने की कला और तहज़ीब बताई गयी है) दी जाती है.... अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज इन सभी वाक़यों ने बड़ा ही अजीब सा माहौल बनाया है मन के अन्दर। शायद एक टीस, एक बेचैनी या एक आहत मन की जानी-पहचानी आदत, हर्ट होने की। क्या करें ऐसी लड़कियों के लिए जिन्हें जीते ही मार दिया जा रहा है, और अगर जीने की इजाज़त मिली भी है तो घरेलू हिंसा के साथ। जिन्हें अभी से ही यह महसूस कराया जा रहा है कि स्कूली शिक्षा उनके लिए बेकार है, कि उन्हें सिर्फ एक सपोर्ट सिस्टम के हिसाब से जीते हुए एक दिन मर जाना है...कि उनका मतलब सिर्फ घर, खाना बनाना, दब-छिप कर रहना, हर ज़्यादती को सामान्य रूप में लेना और अपने समर्थन में यदा-कदा किए गए किसी ‘हाँ’ को अपनी ख़ुशकिस्मती मानना ही है.......


आज हममें बहुत सी ऐसी महिलाएँ हैं जो अपनी ख़्वाहिशों को जी रही हैं, जैसा ख़ुद जीना चाहती हैं वैसा जी रही हैं, अपने-अपने पसंद की ऊँचाइयाँ छू रही हैं...पर अभी बहुत से घर ऐसे हैं जहाँ लड़कियों ने अभी ये भी नहीं जाना कि वे लड़की होने से पहले इंसान हैं, कि ज़िन्दगी पाबन्दियों के पैबन्दों के अलावा भी कुछ है, बहुत कुछ है... इंतज़ार में हूँ कि कब वो दिन देखूँगी जब हमें ईश्वर के इस अनमोल उपहार को यह बताना नहीं पड़ेगा कि आज़ादी क्या है, कि कब ऐसा दिन आएगा जब वे ख़ुद अपनी-अपनी आज़ादी को महसूस करेंगी......और इसके लिए उन्हें किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी....न मेरी, न आपकी, न ख़ुदा के इनायत की....

 
 
 

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating

©2021 by pragyatiwary. Proudly created with Wix.com

bottom of page